January 8, 2025

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जशपुर में 18 जुलाई को क्रांति का आगाज करते हुए अनिश्चित कालीन “महाआंदोलन चक्काजाम…

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र “रौतिया जनजाति” दर-दर की ठोकर खाने मजबूर…

MD भारत न्यूज रायपुर। छत्तीसगढ़ निर्माण की संकल्पना यहां निवासरत अनु.जन जातियों के सर्वांगिण विकास के लिए किया गया था, लेकिन छ.ग. बनने के 23 वर्ष बाद भी आदिवासीयों की समस्या जस की तस धरी पड़ी है। छ.ग. में 42 जनजाति समुदाय निवासरत है, जिसका हर समुदाय का अपना एक अलग रिति रिवाज, संस्कृति,बोली भाषा रहन-सहन खान-पान पहनावा सभी भिन्न-भिन्न है फिर भी ये जनजाति समुदाय एक साथ भाई-चारे के साथ (कुनकुरी निवासरत है आज भी ये 42 समुदाय के साथ छोटी-छोटी आवश्यकताओं रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य, रोजगार जैसी विकराल सस्याऐं खड़ी है ऐसी ही समस्याओं मे से एक बहुत गंभीर समस्या जनजाति समुदाय के लिए घातक साबित होता जा रहा है।

 

 

छ.ग. राज्य बनने के बाद जाति के लिखावट उच्चारण विभेद, मात्रात्मक त्रुटि तथा कुछ जातियां जनजाति होने के बाद भी उसको सूचि में शामिल नहीं किया गया जिसके कारण 20-25वर्षो से आदिवासी होते हुए भी जनजाति लोगों को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है इनमें से प्रमुख जनजाति रौतिया है। सन् 1872 से ले करके अब तक के समस्त रिकार्ड, शासकीय अभिलेख आदि मे रौतिया जाति को जनजाति ट्राइबस (Primitive Tribes) कहा गया राय बहादुर हीरालाल एवं रसेल ने रौतिया जनजाति को प्रिमिटीव ट्राईब कहा। आजादी के पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा राजपत्र में प्रकाशित THE KING’S MOST EXCELLENT MAJESTY IN COUNCIL 1936 (Govt. of India) में Central Provinces & Berar के लिए 36 आदिवासी समुदाय को अनुसुचित जनजाति की सूचि में सूचिबध्द किया गया था, जिसमें रौतिया जनजाति एक है। 04 अगस्त 1948 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने डीबेट में Constituent Assembly Debates On 4 November, 1948 Part Ix CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA VOLUME VII प्रस्ताव 36 जातियों के लिए दिया गया था जिसमें रौतिया जाति भी एक था, लेकिन 1950 की सूचि में कुल 34 आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित कर दिया गया जिसमें रौतिया जनजाति तथा ओझा जनजाति को सूचि से पृथक कर दिया गया ।।

उक्त प्रशासकीय भूल के कारण रौतिया जनजाति पिछले 50-60 सालों से अनभिज्ञ रहा जैसे ही ज्ञात हुआ कि रौतिया जनजाति आजादी के पूर्व अधिसूचित था, समाज में बेहद आक्रोश के साथ उम्मीद की एक किरण नजर आ रही है जिसके लिए समाज एकजूट होकर प्रयास शुरु किया।

स्थानीय प्रशासन सहित राज्य एवं केन्द्र स्तर पर पिछले 20 वर्षो से रायपुर और दिल्ली के चक्कर लगा-लगा कर थक गये। थक-हारकर समाज ने कठोर निर्णय लेते हुए अब सड़क की लड़ाई का फैसला कर लिया है। इस हेतु विभिन्न चरणों में बैठकों, एवं चर्चा परिचर्चा का दौर युध्द स्तर पर किया जा रहा है। रौतिया समाज ने 11 जून 2023 को एक महासम्मेलन आयोजित किया जिसमें 15-20 हजार लोगों की उपस्थिति में एक सूर में कहा है कि 30 जून 2023 तक राज्य सरकार रौतिया जनजाति का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को अग्रेषित नहीं करने।

लाखों की संख्या में सड़क पर उतरकर धरना प्रदर्शन चक्का जाम जैसे उग्र आंदोलन को बाध्य होगा, जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी। ज्ञात हो कि 2017 में ऐसे हि छ.ग. के 22 आदिवासी समुदाय जिनका कि मात्रात्मक त्रुटि, उच्चारण विभेद वाली जातियों को राज्य स्तर पर निराकरण करते हुए तात्कालिन छ.ग. सरकार ने राहत देते हुए आदेश जारीकर 40-45 लाख लोगों के भविष्य को उज्जवल बनाया था. राज्य सरकार रौतिया जनजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कराने हेतु रौतिया जाति का प्रतिवेदन शीघ्र अति शीघ्र भारत सरकार को भेजने के लिए समाज द्वारा किये जा रहे निवेदन आवेदन अनुनय-विनय की अनदेखी से क्षुब्ध होकर समाज में 18 जुलाई 2023 को क्रांति का आगाज करते हुए अनिश्चित कालीन “महाआंदोलन चक्काजाम जिला जशपुर (लोरो) में करने पर मजबूर हो गई। इस पवित्र महाआंदोलन में लाखों की संख्या में बच्चे, बुजुर्ग, महिला एवं पुरुष चक्काजाम में शामिल होंगे।